जब राज़ हो दिल में गहरा
हर ज़ख्म पे यादों का पहरा
जब मंज़िल ने भी मुंह फेरा
यारों ने भी आशियाना छोड़ा।
जब आसूं भी बह ना पाए
नज़रों को भी मिला ने पाए
जब लफ़्ज़ों ने भी ज़बान ना हो
कम्बख़त इश्क़ भी अब साथ ना हो।
बस हंसी भी ख़ामोश रहे
हर दिन में रात ढले
मन में कुछ बवंडर सा है
अपना जो था आज़ पराया सा हैं।
-Praful Maheshwari